युवा और शिक्षा व्यवस्था का संकट: अब चुप रहना गुनाह है
1. हर चुनाव में नया वादा, हर बार नया धोखा
2014 से अब तक देश के युवाओं से कई वादे किए गए—2 करोड़ नौकरियाँ हर साल, हर हाथ को काम, 100 स्मार्ट सिटी, 15 लाख खाते में, और डिजिटल इंडिया जैसे तमाम सपने। लेकिन हकीकत कुछ और है। न नौकरी आई, न स्मार्ट सिटी बने, और न ही 15 लाख दिखे। इसके बावजूद युवा अब भी भरोसा कर रहा है। कब तक?
अब वादा नहीं, सबूत चाहिए। जो नेता वादा निभा न सके, उनसे सवाल होना चाहिए। क्योंकि अब चुप रहना सिर्फ आत्मघात नहीं, बल्कि देश के भविष्य से गद्दारी है।
2. छात्रों की चीख, सिस्टम की चुप्पी
SSC जैसी परीक्षाओं में घोटाले, पेपर लीक, सेंटरों पर ताले, बार-बार परीक्षा रद्द। ये सब एक ऐसे सिस्टम की कहानी है, जो छात्रों की मेहनत और भविष्य से खेल रहा है। एक आम छात्र जो बोल भी नहीं सकता, वो भी इस अन्याय के खिलाफ चीख रहा है।
तो फिर हम, जो सब देख-सुन सकते हैं, चुप क्यों हैं?
3. युवाओं का गुस्सा अदृश्य क्यों है?
सरकार को युवाओं की पीड़ा दिखती क्यों नहीं? क्योंकि कैमरा सिर्फ नेताओं के चेहरे पर फोकस करता है। वो चेहरा जो हर इवेंट में चमकता है, लेकिन बेरोज़गार युवाओं की आँखों में छुपा अंधकार नहीं देखता।
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जब सत्ता जनता से डरना छोड़ दे, तब लोकतंत्र सिर्फ एक ढांचा रह जाता है।
4. हर बार तकनीकी गड़बड़ी, हर बार नुकसान छात्र का
हर बार परीक्षा रद्द होने पर एक ही बहाना—“टेक्निकल गड़बड़ी।” लेकिन क्या कभी किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय हुई? किसी को सज़ा मिली? नहीं।
छात्रों का साल बर्बाद हो जाता है, लेकिन सिस्टम साफ़ बच निकलता है।
5. सरकारी नौकरी अब सपना नहीं, मज़ाक बन गई है
सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए अब ये रास्ता सिर्फ संघर्ष नहीं, अपमान भी है। कभी परीक्षा रद्द, कभी सेंटर में गड़बड़ी, और कभी आखिरी वक्त में बदलाव। इसके बाद भी सरकार से कोई जवाब नहीं।
क्या प्रधानमंत्री को नहीं दिखती ये पीड़ा?
6. भाषण बनाम सच्चाई
मोदी जी अक्सर कहते हैं कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसका युवा है। लेकिन क्या ये वही युवा है जिसे सड़कों पर लाठी खानी पड़ रही है? या फिर वो युवा है जिसकी परीक्षा बार-बार रद्द हो रही है?
सिर्फ़ भाषणों में युवा शक्ति की बात करना पर्याप्त नहीं है। सिस्टम को ठीक करना ही असली समाधान है।
7. शिक्षा और शिक्षक दोनों उपेक्षित
एक तरफ़ शिक्षक प्रदर्शन कर रहे हैं, सड़क पर बैठकर न्याय मांग रहे हैं। दूसरी तरफ छात्र न्याय के लिए सोशल मीडिया और अदालतों की तरफ़ देख रहे हैं। और केंद्र सरकार सिर्फ मीडिया इवेंट मैनेजमेंट में व्यस्त है।
क्या यही न्यू इंडिया की तस्वीर है?
8. जब छात्र अपमानित हों, तो देश कैसे विकसित होगा?
किसी भी देश की रीढ़ उसकी शिक्षा व्यवस्था और युवा होते हैं। लेकिन जब परीक्षा रद्द होती है, छात्र सड़कों पर पीटे जाते हैं, और सिस्टम चुप होता है—तो ये सिर्फ़ छात्रों का अपमान नहीं, बल्कि देश की आत्मा पर हमला है।
9. मीडिया की चुप्पी और नेताओं की दिखावा पत्रकारिता
एक नेता किसी मंदिर या कार्यक्रम में जाता है, उसके पीछे 10 कैमरे दौड़ते हैं। लेकिन जब छात्र रोते हैं, तो कोई कैमरा नहीं दिखता। कोई रिपोर्टर नहीं आता। मीडिया भी अब सत्ता का मैनेजर बन चुका है, न कि निगरानी करने वाला चौथा स्तंभ।
10. विश्वगुरु बनने का भ्रम
भारत को विश्वगुरु बनाने की बात होती है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ़ मीडिया इवेंट्स और फेक नैरेटिव से कोई देश विश्वगुरु बन सकता है?
जब शिक्षक और छात्र दोनों सड़कों पर हों और सरकार चुप्पी साध ले—तो ये विश्वगुरु नहीं, “शो-गुरु” बनने की तैयारी है।
निष्कर्ष: अब चुप्पी गुनाह है
देश का युवा अब सिर्फ़ दर्शक नहीं रह सकता। अगर हम अपने अधिकारों और भविष्य के लिए नहीं बोलेंगे, तो कोई और क्यों बोलेगा? अब वक्त है सवाल करने का, सबूत मांगने का और सिस्टम को जवाबदेह बनाने का।
सरकार को ये याद दिलाना होगा कि लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च है।
अगर आप भी छात्र हैं, शिक्षक हैं या इस सिस्टम की वजह से थके हुए हैं—तो अब चुप मत रहिए। एकजुट होइए, सवाल उठाइए और बदलाव के लिए खड़े होइए। क्योंकि जब तक युवा नहीं बोलेगा, तब तक कोई नहीं सुनेगा।

