राजस्थान का मंत्रिमंडल बीजेपी को लोकसभा के दलदल से कितना दूर कर पाएगा ? - सत्य न्यूज़ हिंदी

राजस्थान का मंत्रिमंडल बीजेपी को लोकसभा के दलदल से कितना दूर कर पाएगा ?

राजस्थान का मंत्रिमंडल
 

राजस्थान का मंत्रिमंडल


राजस्थान का मंत्रिमंडल: अभी कुछ दिन से राजस्थान की राजनीती के जलते आंगन में शनिवार को सपने की ऐसी वर्षा हुई कि कहीं कोंपलें महक उठीं तथा कहीं कहीं नए-नवेले पत्ते भी निकल आए।

राजस्थान का मंत्रिमंडल के लिए सेलेक्ट किए गए चेहरों से आख़िर उस कहानी की सच्चाई ताज़ी हो ही गई कि इतने परतिच्छा के पीछे क्या वजह थीं तथा ख़ौफ़ क्या थे । इसे डर न भी कहा जाय तो एक सजगता भी मान सकते हैं।

विधानसभा चुनावों के स्टार्ट होने से ठीक पूर्व बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड के बरअक्स मूल ओबीसी के सपोर्ट में एक आवाज़ भारत के कई कोनों में तेज़ वेग से गूंज रही थी।

इलेक्शन के जातिवाद समीकरण

इससे बहुत ज़ादा तो नहीं, मगर कुछ असर राजस्थान में भी देखने को मिलता था । बीजेपी का हाईकमान अपने हिंदुत्व कार्ड के बदले मूल ओबीसी के हक़ में उठी आवाज़ों से बहुत ज़ादा चौकन्ना है । तथा वह लोकसभा चुनावों 2024 को लेकर किसी भी प्रकार का ढील नहीं देना चाहता ।

मंत्रिमंडल का चुनाव साफ़ बताता रहा है कि भाजपा हाईकमान ऊपर से नीच तक सुलगती शाम के माहौल को भांप चुका है तथा उसने राजनीती की नई चैलेंज के बीच एक जादू की बस्ती बसाने की पर्यास की है।

लोकसभा इलेक्शन के जातिवाद समीकरण साधने की यह कवायद इतनी मज़ेदार है कि उसने ऊसर-बंजर बियाबाँ तथा जंगल में एक फूलों भरा रास्ता बनाने की ज़बरदस्त बाज़ीगरी की है । राजस्थान के हिस्ट्री में शायद फस्ट टाइम दो भील मीणा कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं ।



मीणा वर्चस्व जैसी राजस्थानी राजनीती में अब तक पहले के मीणाओं का ही प्रभुत्व रहा है. मगर इस बार बीजेपी ने इस बार समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा पूरे समाजों के लिए भिड़ा के नेता की भूमिका साथ देने वाले डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के सिवा किसी को कैबिनेट मंत्रियों में नहीं लिया है ।

इससे साफ़ हो गया है कि बीजेपी ने राजनितिक की उस ऋतु को अंदाज़ा लगाने की कोशिश की है, जो की राजस्थान के आदिवासी जगहों में नए राजनीती माहौल खड़ा कर चुकी है ।

राजस्थान के मंत्रिमंडल का खेल ।

राजस्थान में ऐसी जातियां बहुत सी हैं, जिन्हें गवर्नमेंट में आज़ादी के बाद से अभी भी सही प्रतिनिधित्व नहीं मिला ।

आज के हालात ऐसे हैं कि अनुसूचित जाति तथा मूल पिछड़ा वर्ग की बहुत सी जातियों के बच्चे अभी भी स्कूलों की दहलीज़ तक देख तक नहीं पाए हैं ।

इस हालात में कई वर्षों से अनुसूचित जातियां तथा कई पिछड़ा वर्ग की मूल कास्ट प्रदेश की सत्ता में जाटों-राजपूतों तथा ब्राह्मणों का वर्चस्व देखकर खुदकी आस्तीनें भिगोती रही हैं ।

बीजेपी के रणनीतिकारों का लोकसभा इलेक्शन

बीजेपी अभी तक हिंदुत्व तथा इस बार अब सनातन के सहारे राजनीती में नए जादू लेकर उतरी तो कांग्रेस के सियासी ने उसकी काट यानि जवाब मूल ओबीसी के मुद्दों के रूप में देखी । तथा घोषणा की कि उनकी गवर्नमेंट बनी तो वे जातिगत जनगणना कराकर प्रतिनिधित्व को तो ठीक करेंगे ही, सामाजिक इन्साफ की नई दिशा भी तलाशेंगे ।

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बीजेपी के रणनीतिकारों को लोकसभा इलेक्शन को देखते हुए महसूस हुआ है कि पहले तो राजनीती की राहगुज़र इस तरह न थी। यानि, उसने इस वर्ष मूल ओबीसी की कास्ट के चार कैबिनेट मंत्री बना डाले ।

इसके अलावा एक को स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री का दर्जा दिया है तथा छठे विधायक को राज्य मंत्री का दर्जा मिला है ।

इस प्रकार बीजेपी के रणनीतिकारों ने कलबी-पटेल, रावत, माली, कुमावत, धाकड़ तथा देवासी जैसे समाजों को प्रतिनियुक्त देकर दरगुज़र मूल ओबीसी संबंधित जातियों के बिफरे तथा बिखरे हुए नदी में नई लहरें उतारने की कोशिश की है ।

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