आखिर देश कब तक गांधी और गोडसे में बटता रहेगा -

आखिर देश कब तक गांधी और गोडसे में बटता रहेगा

गांधी और गोडसे
 

यह विचारधारा गांधी की हत्या के बाद ही नहीं प्रारंभ हुई थी गांधीजी के अफ्रीका से लौटने के बाद इसका प्रारंभ हो गया था। स्वतंत्रता सैनिकों में से एक बड़े सैनिक थे बाल गंगाधर राव तिलक और वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे जैसे विचारक बाल गंगाधर राव तिलक के पीछे चल रहे थे और धीरे-धीरे तिलक जी की विचारधारा से हटते चले गए जिसका मुख्य कारण हमेशा हिंदू मुस्लिम विवाद ही रहा है इस विचारधारा वाले लोग समाज में सुधार तो लाना चाहते थे

लेकिन उन्हें समाज में बदलाव कतई पसंद नहीं थी जैसे बाल विवाह पुराने रीति रिवाज जात पात इनको वो आगे ले जाना चाहते थे जोकि गांधी के विचारों के खिलाफ था। डॉ राम मनोहर लोहिया अपनी किताब हिंदू बनाम हिंदू में लिखते हैं कि गांधी की हत्या का मुख्य कारण हिंदू मुस्लिम की एकता पर जोर देना और जात पात को खत्म करना बताया है

गोडसे ने अदालत में पेशी के दौरान कई कारण बताएं मानता हूं जिनमें कई विचारों पर असहमति हो सकती है लेकिन उसका हल किसी की हत्या कतई नहीं हो सकता गोडसे का माना था कि गांधीजी की इस अहिंसा की नीति से हिंदू कायर बन जाएंगे जैसे हाल ही में हुए विभाजन में कई हिंदू और कई मुस्लिम मारे गए।

पहला दावा समाज में फैले भ्रामक कथन

गांधीजी पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान के बीच एक कॉरिडोर बनवाना चाहते थे देश का बंटवारा हुआ भारत और पाकिस्तान अलग हुए पाकिस्तान के दो हिस्से हुए एक पश्चिमी पाकिस्तान एक पूर्वी पाकिस्तान दोनों के बीच में भारत का एक बहुत बड़ा हिस्सा मौजूद है पश्चिमी पाकिस्तान जिसे हम अब पाकिस्तान कहते हैं

पूर्वी पाकिस्तान जो पाकिस्तान से अलग होकर एक बांग्लादेश बन गया सोशल मीडिया पर आए दिन कुछ तस्वीरे वायरल होती रहती जिनमे दावा किया जाता है कि गांधी जी पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के लिए भारत के बीच में से एक रास्ता देना चाहते थे गांधी जी 15 दिन और जिंदा रह जाती तो भारत की तस्वीर कुछ ऐसी होती कश्मीर में पाकिस्तान से बांग्लादेश के बीच एक रास्ते को दर्शाया जाता है।

सच्चाई क्या है..?

DW में छपी एक खबर के मुताबिक इस गलियारे का जिक्र रॉयटर्स के एक पत्रकार ने किया था पत्रकार ने 22 मई 1947 को जिन्ना से पूछा कि आपको नहीं लगता की भारत को पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान के बीच रास्ता देना चाहिए! जवाब में जिन्ना ने हामी भर दी जून 1947 में फिर एक बार गलियारे की बात उठी ब्रिटिश सरकार ने कहा भारत को बड़ा दिल दिखाते हुए पाकिस्तान को रास्ता देनी चाहिए।

न्यूज़ एजेंसी एसोसिएट से बात करते हुए सी राजगोपालाचार्य जी ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया, कहा की यह गैर जरूरी मांग है इस पर कभी बात नहीं की जाएगी इससे यह साबित हो जाता है कि गांधीजी का यह विचार कतई नहीं था वह तो बंटवारे की कवायद के खिलाफ भी थे।

दूसरा दावा सच्चाई क्या है..?

गांधी की वजह से हुआ देश का बंटवारा मैं अपनी बचपन से देखता रहा हूं जिन्ना के साथ गांधी जी की एक तस्वीर शेयर की जाती है और उस पर कुछ पंक्तियां लिखी हुई होती जिसमें दावा किया जाता है कि देश का बंटवारा गांधीजी की स्वार्थों की वजह से हुआ।

धर्म आधारित राष्ट्र बनाना कट्टरपंथियों का आईडिया था। मुस्लिम लीग ने इसे अपना मुद्दा बनाया मुस्लिम लीग ने इसे पंजाब और बंगाल के चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाया जिसमें उनकी सीटों की बढ़ोतरी हुई इसके बाद पाकिस्तान की मांग ने तेजी पकड़ ली देश में जगह-जगह दंगे होने शुरू हो गए लोगों ने मारना काटना शुरू कर दिया पड़ोसी पड़ोसी को काट रहे थे

अंततः 14 15 अगस्त भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो गया तब हुआ जब कांग्रेस कमेटी ने माउंटबेटन प्लान को स्वीकार कर लिया। नेहरू और पटेल बंटवारे के पक्ष में थे गांधी जी किसके पक्ष में थे 3 जून को कहे राजेंद्र प्रसाद की बात से मालूम चलती है गांधीजी ने कहा मुझे इस प्लान में सिर्फ बुराई बुराई नजर आती है

जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा क्या आप बटवारा डालने के लिए उपवास करेंगे गांधी जी ने कहा कि यदि कांग्रेस कोई बेवकूफी करें तो इसका मतलब यह है कि मैं मर जाऊं गांधीजी ने आखरी दम तक बटवारा डालने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस कमेटी 1946 के बाद बंटवारे की स्वायत्तता में लगी हुई थी और गांधीजी किनारे किए जा चुके थे इसलिए कोई से रोक नहीं पाए।

तीसरा दावा भगत सिंह को गांधी जी ने नहीं बचाया सच्चाई क्या है..?

31 जनवरी 1931 को एक रैली के संबोधन के दौरान उन्होंने कहा था जिन कैदियों को फांसी की सजा मिली है उन्हें फांसी नहीं मिलनी चाहिए उन्होंने कहा यह मेरा व्यक्तिगत विचार है। इसे समझौते की राय नहीं बना सकते गांधीजी के समझौते की बात कर रहे थे वह था लॉर्ड इरविन और कांग्रेस के बीच हुआ हुआ समझौता लॉर्ड इरविन और गांधी पैक्ट। 17 फरवरी 1931 को वायसराय और गांधी जी इस समझौते पर बातचीत हुई मासी रुकवाने के लिए गांधीजी ने इरविन पर जोर डाला 5 मार्च तक गांधी इरविन पैक्ट पर बात हुई गांधीजी ने पैक्ट में सरदार भगत सिंह को रिहा करने की बात नहीं रखी उन्होंने कहा था

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निजी तौर पर मैं वायसराय से बातचीत करूंगा! इरविन से बातचीत के दौरान गांधी जी ने कहा यदि आप मौजूदा हालात को बेहतर बनाना चाहते हैं तो आपको भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी रुक बानी होगी इरविन ने कहा आपका यह विचार मुझे पसंद आया इस बात पर जरूर विचार किया जाएगा गांधी जी से बात करने के दौरान वायसराय इरविन ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को रिपोर्ट भेजी कि गांधीजी अहिंसा में विश्वास रखते हैं इसलिए वह किसी की भी जान लेने के खिलाफ है उन्हें लगता है मौजूदा हालात को संभालने के लिए यह सजा टाल देनी चाहिए।

भगत सिंह और उनके साथियों की सजाटाल देनी चाहिए

गांधी जी का कहना था।कि भगत सिंह और उनके साथियों की सजा कम से कम कराची अधिवेशन तक टाल देनी चाहिए लेकिन ऐसा हुआ नहीं गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए आखरी समय तक कोशिश की उन्हें लग रहा था कि वह वायसराय को मना लेंगे इसलिए वह कराची अधिवेशन के लिए विलंब कर रहे थे 21 मार्च 1931 को रॉबर्ट बर्निश ने न्यूज़ यूनिकल में लिखा कि गांधीजी भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए कराची अधिवेशन पहुंचने में देरी कर रहे हैं

22 मार्च को फिर दोबारा गांधी जी ने इरविन से मुलाकात की वायसराय ने वादा किया कि वह इस पर जरूर विचार करेंगे गांधीजी को उम्मीद दिखी 23 मार्च को फिर दोबारा उन्हीं बातों को वायसराय ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को सजा के सिलसिले में फिर पत्र लिखा लेकिन तय तारीख से 1 दिन पहले यानी 23 मार्च भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दे दी यह गांधी का सच है।

आप माने या ना माने तथ्य यही है व्यक्तिगत विचारों में तालमेल ना होना सही हो सकता है लेकिन किसी व्यक्ति के हत्यारे को सही बताना एक बहुत बड़ी बेवकूफी है आपको या मुझे गांधीजी या नाथूराम गोडसे के विचार अच्छे लग सकते हैं लेकिन गांधी जी की हत्या को या और किसी की हत्या को सही ठहराना यह बात बड़ी निंदनीय।

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