गरीब किसानों की छाती पर बन रहा है देश का सबसे बढ़ा एयरपोर्ट -

गरीब किसानों की छाती पर बन रहा है देश का सबसे बढ़ा एयरपोर्ट

गरीब किसानों की छाती पर बन रहा है देश का सबसे बढ़ा एयरपोर्ट
 

गरीब किसानों की छाती पर बन रहा है देश का सबसे बढ़ा एयरपोर्ट

भारत के साथ दुनिया का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म गोरखपुर रेलवे स्टेशन का है ऐसा ही देश का सबसे और दुनिया का चौथा एयरपोर्ट जो भारत में बन रहा है आज यानी 25 नवंबर को नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (जेवर एयरपोर्ट) की नींव रखी जाएगी। यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इसके निर्माण में 29 हजार 650 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यहां एक साथ 178 विमान खड़े हो सकेंगे।

एएनआई की रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पहली फ्लाइट यहां से सितंबर 2024 में उड़ेगी। जेवर एयरपोर्ट 5845 हेक्टेयर जमीन पर बनेगा। हालांकि पहले चरण में इसका निर्माण 1334 हेक्टेयर जमीन पर होगा। फर्स्ट फेज में यहां दो यात्री टर्मिनल और दो रनवे बनाए जाएंगे। बाद में यहां कुल पांच रनवे बनेंगे।

यह एयरपोर्ट चार एक्सप्रेसवे, मेट्रो, बुलेट ट्रेन व पॉड टैक्सी से जुड़ा होगा। इसकी सबसे खास बात यह है कि मेट्रो और बुलेट ट्रेन का स्टेशन एयरपोर्ट की टर्मिनल बिल्डिंग में बनेगा, जिसमें हवाई सफर करने वाले यात्रियों के लिए हर सुविधा का ख्याल रखा गया है।

जो आपने अभी पढ़ा ऐसा सरकार और व्यापारी कंपनियां कह रही हैं इस प्रोजेक्ट में सिर्फ़ सरकार और कंपनियों ने सकारात्मक मुनाफे की ही बातें बताई गईं हैं लेकिन सरकार दूसरा पक्ष बताना भूल गई है

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के अनुसार

जिस एयरपोर्ट को लेकर सरकार उपलब्धियों की सूची लंबी कर रही है उसी एयरपोर्ट के लिए विस्थापित किसानों की शिकायतों की सूची भी कम लंबी नहीं हैl एनडीटीवी के रिपोर्टर सौरभ ने बताया कि ज़ेवर में बनने वाले एयरपोर्ट के कारण 9000 किसान परिवार विस्थापित होंगे

यह कोई सामान्य संख्या नहीं हैl हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री किसान आंदोलन से भले बात नहीं करते हैं लेकिन किसानों का सम्मान बहुत करते हैं तो हमारा सवाल है कि इसके भूमि-पूजन में क्या ये 9000 किसान परिवार भी बुलाए जाएंगे जिनकी ज़मीन पर भूमि पूजन हो रहा है? पहले चरण में पारोही, रन्हेरा, रोही, दयानतपुर, किशोरपुर, बनवारी वास की ज़मीन पहले चरण के लिए ली गई है

क्या उनसे पूछा जाएगा कि मकान बनाने, मलबा हटाने का पूरा पैसा सभी को मिला है या नहीं. हर कोई गांव लौटना चाहता है, नहीं लौट पाता तब भी यादों में लौटता रहता हैl अमरीका जाकर भी लोग अपने गांव को याद करते हैंl एक भरोसा रहता है कि उनका गांव वहां रहेगा, वे कभी भी जा सकते हैंl 

आगे रवीश कुमार ने गुजरात के स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का उदाहरण देकर समझाया:

गुजरात में 3000 करोड़ की लागत से सरदार पटेल की मूर्ति बनी; इसके लिए भी ज़मीनें ली गईं, हम केवल मूर्ति देखते हैं और सराहते हैं, लेकिन जिन किसानों ने ज़मीन दी उनका क्या हुआ ?क्या इस मूर्ति के कारण उनकी तकदीर बदली या मुआवज़े के साथ उनकी कहानी खत्म हो गई. अब वहां के किसानों का हाल कोई नहीं लेता और न बताता हैl

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इसे लेकर पीयूष गोयल का एक चर्चित बयान है कि आने वाले वर्षों में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के इको सिस्ट्म में एक लाख करोड़ का कारोबार पनपेगाl उनका यह बयान जनवरी 2020 के इकोनमिक टाइम्स में छपा हैl गुजरात में कई हज़ार उद्योग हैं इसके बाद भी राज्य का बजट करीब सवा दो लाख करोड़ का है

और अकेले इस जगह से एक लाख करोड़ के इकोसिस्टम के विकसित होने का सपना पीयूष गोयल दिखा रहे थेl एक बार नहीं कई बार, यही बात नवंबर 2019 में भी कही थी।

पत्रकार जयदीप हार्डीकर कहते हैं कि

नागपुर में कार्गो हब के नाम पर जो सपना बेचा गया उससे स्थानीय लोग बर्बाद हो गए, सबसे ज़्यादा बर्बादी आई शिवनगांव में, पहले से भी उनकी ज़मीनें विकास की योजनाओं के लिए ली जाती रहीं लेकिन कार्गो हब के नाम पर एक साथ 1500 हेक्टेयर ज़मीन चली गईl

पूरा गांव ख़ाली हो गया, उसके पहले इस गांव के लोग साल में 25-29 करोड़ का दूघ उत्पादन करते थे, पांच हज़ार भैंसे थीं, 2000 गायें थीं, हर दिन चालीस हज़ार लीटर दूध का उत्पादन होता था

लेकिन ज़मीन अधीग्रहण के बाद बर्बाद हो गए, यही नहीं गांव के लोगों के मुआवज़े का पैसा आया तो उस पैसे को ठगने के लिए नौकरी दिलाने के नाम पर कई लोग आ गए. चिट-फंड कंपनियां आ गईं जो उनके पैसे को दो साल में दो गुना तीन गुना करने का सपना दिखाने लगीं लोग ज़मीन बेच कर ही नहीं बर्बाद हुए बल्कि इन सब चक्करों में भी हो गएl

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